राजा देवी सिंह गोदारा के डर से भागा था अंग्रेज कलेक्टर

वाकया 1857 का है। भारत की जनता के मन में अंग्रेजों की दासतां से मुक्त होने के लिए क्रांति की ज्वाला भड़कने लगी थी। उसी दौरान राया के राजा देवी सिंह ने खुद को स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया था। उनके डर से मथुरा का कलक्टर भाग खड़ा हुआ था।

रियासत राया टप्पा 1857 की क्रांति का गवाह रहा है। राजा देवी सिंह जाट द्वारा खुद को शासक घोषित करने के बाद उनके नेतृत्व में जेल बंदियों की नियुक्ति की गई। क्रांति के दौरान सैनिकों के साथ उन्होंने सरकारी दफ्तर, इमारत, पुलिस चौकियां, बंगले फूंक दिए थे। सरकारी खजाना लूटा। थाना राया को सात दिन तक घेरे रखा। यहां रिकॉर्ड जला दिया गया। नतीजा यह हुआ कि राजा देवी सिंह के विद्रोह से अंग्रेजों की सल्तनत हिल गई। कलक्टर मथुरा छोड़कर आगरा भाग गया। देवी सिंह को जन समर्थन से परेशान ब्रिटिश हुकूमत ने हालात नियंत्रित करने के लिए कोटा से फौज बुलाई।


कलक्टर हिल ने कोटा की फौज आने के बादकैप्टन डेनिश के साथ अभियान चलाकर स्वतंत्र शासक देवी सिंह को पकड़ लिया। उन्हें सहयोगी के साथ फांसी दे दी गई। वह करीब नौ माह तक अंग्रेजी शासन को परेशान करते रहे। मथुरा जनपदीय सेनानी नामक पुस्तक और एफएस ग्राउस द्वारा लिखित मथुरा मेमोरियर नामक पुस्तक में देवी सिंह की गाथा का उल्लेख है। पुस्तक के हवाले से सादाबाद के पूर्व विधायक अनिल चौधरी बताते हैं कि राजा देवी सिंह के आंदोलन को देख अंग्रेज हिल गए थे। उनको पकड़ने के लिए रात-दिन एक कर दिया।

क्रांति से पहले साधु किसान थे देवी सिंह


क्रांति से पहले देवी सिंह एक किसान थे। 1857 की क्रांति जिस समय पनप रही थी, तब कई गांवों के लोग एकत्रित होकर उनके गांव अचलू पहुंचे। उनका तिलक कर राया रियासत का राजा घोषित कर दिया। इसके बाद उन्होंने अलीगढ़, हाथरस, सादाबाद आदि स्थानों पर क्रांति की अलख जलाई।

धूल फांक रहा स्मारक

जंग-ए-आजादी की लड़ाई में जनपद के प्रमुख क्रांतिकारी राजा देवी सिंह की स्मृतियां अब इतिहास के पन्नो में सिमट गई हैं। 1857 की क्रांति के महानायक का स्मारक अब धूल फांक रहा है। जिस स्थान पर उन्हें फांसी पर लटकाया गया था, वह उपेक्षित है। यहां स्मारक अवश्य बना है। यह स्थान थाना राया के पीछे स्थित है। इससे करीब डेढ़ किमी दूरी पर राजा का गांव भी है।

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