जज, आईपीएस और अब कलक्टर बनने वाले सिद्धार्थ सिहाग की कहानी
आईएएस सिद्धार्थ सिहाग के बारे में आप शायद ही जानते होंगे कि वे आईएएस बनने से पहले वे जज व आईपीएस बने थे। इनकी पढ़ाई और फिर आईएएस तक का सफर युवाओं के लिए प्रेरणादायक है। सिहाग की मंजिल थी कि वह आईएएस ऑफिसर बनकर समाज की सेवा करें, उसी सफर से पहले न्यायिक सेवा का रास्ता मिला और फिर पुलिस सेवा में आए लेकिन मंजिल तो भारतीय प्रशासनिक सेवा ही थी, यही उनका जुनून था। दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने बिना कोचिंग सफलता की साधना पूरी मेहनत से की। सिहाग स्कूलिंग के बाद पंचकुला से सीधे हैदराबाद गए।
सिद्धार्थ सिहाग का देहली ज्यूडिशियल सर्विस परीक्षा पास करने के बाद देहली के सिविल जज मेट्रोपोलियन मजिस्ट्रेट पर चयन हो गया। ट्रेनिंग कर ही रहे थे कि आईएएस का परिणाम आ गया और उनको 148वीं रैंक मिली, उस समय उनको आईपीएस कैडर मिला और नेशनल पुलिस एकेडमी हैदराबाद गए। उन्होंने आईपीएस की ट्रेनिंग के साथ ही आईएएस बनने का सपना नहीं छोड़ा और उसकी तैयारी भी जारी रखी। आईएएस की परीक्षा पूरी तैयारी के साथ दी और सिहाग को 42वीं रैंक मिली। इसके लिए उन्होंने कोई कोचिंग नहीं की। अलबत्ता 10 घंटे नियमित रूप से पढ़ाई जरूर की।
आईएएस की तैयारी के दौरान इंटरनेट से पुराने आईएएस के अनुभव जरूर लिए। वर्धा के तत्कालीन कलक्टर के ब्लॉग से भी नोट मददगार रहे और बाकी पूरा फोकस पढ़ाई पर। वे कहते है कि उस समय दो ऑप्शनल पेपर होते थे और तब भी बहुत टफ पेपर होते थे, आज के दौर में सामान्य ज्ञान पर पूरा फोकस होना चाहिए।
हरियाणा के हिसार के छोटे से गांव सिवानी बोलान के है और उनकी पूरी पढ़ाई पंचकुला में ही हुई है। सिहाग की पक्की रूकमणि सिहाग भी आईएएस है। वे उदयपुर भी रही, बाद में डूंगरपुर में जिला परिषद सीईओ बनी, अभी उनका तबादला बूंदी कलक्टर के पद पर हुआ। सिद्धार्थ के पिता दिलबाग सिंह हरियाणा में चीफ टाउन प्लानर के पद से रिटायर्ड हुए तो उनका भाई सिद्धांत दिल्ली में जज है।
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