महाराज राणा उदयभानसिंह (1911- 1948)

 जाट लेखक ठाकुर देशराज ने अपनी पुस्तक में धौलपुर नरेश राणा उदयभानु सिंह जी की भूरी भूरी प्रशंसा की है। 

राजस्थान के तत्कालीन राजाओं में वे सर्वश्रेष्ठ व पूजनीय थे। 
उनके चरित्र पर ऐसा कोई भी दाग नहीं जिससे की उनकी महानता पर सवाल उठाया जा सके। 
सबसे महत्वपूर्ण बात थी,उनका जातीय प्रेम। 
अपने को जाट होने पर गौरवान्वित महसूस करते थे। 

ठा. देशराज जी की पुस्तक "जाट इतिहास" के पृष्ठ 692-693 पर राणा साहब का परिचय इस प्रकार दिया गया है -

---------------------------------

महाराज राणा उदयभानसिंह(1911- 1948)


ठाकुर देशराज लिखते हैं कि श्रीमान् जी का जन्म सन् 1901 ई. हुआ था। राणा उदयभानसिंह महाराज रामसिंहजी के छोटे भ्राता थे। 1911 ई. में ज्येष्ठ भ्राता के स्वर्गवास होने पर गद्दी पर बैठे। सन् 1913 ई. में राज्यधिकार प्राप्त हुए।
राणा उदयभानसिंह ने केडिट कोर में भी शिक्षा पाई थी।

महाराज राणा बहादुर का उपाधि सहित पूरा नाम ‘रईस उद्दौला पिहदार उल्मल्क महाराजधिराज श्री सवाई महाराज राणा लेफ्टीनेण्ट कर्नल सर उदयभानसिंह लोकेन्द्र बहादुर दिलेरगंज जयदेव के. सी. एस. आई., के, सी. बी. ओ.’ था।

यह अभिमान की बात थी कि भरतपुर की भांति
महाराज राणा धौलपुर भी सरकार अंग्रजों को कोई खिराज नहीं देते थे। महाराज राणाओं के लिए 17 तोपों की सलामी थी।

राणा उदयभानसिंह जी जातिय कार्यों में भी खूब दिलचस्पी लेते थे।
मेरठ में जिस समय जाट महासभा का वार्षिक अधिवेशन हुआ था, राणा उदयभानसिंह ने उसका सभापतित्व ग्रहण करके अपने जातीय प्रेम का परिचय दिया था।
लखावटी का प्रसिद्ध जाट कालेज राणा उदयभानसिंह के ही के नाम पर प्रसिद्ध है। राणा उदयभानसिंह उसके संरक्षक हैं।

सन् 1930 ई. में देहली में होने वाले जाट महासभा को महोत्सव में पधार कर आपने अपने हृदय-द्वार को खोलकर बता दिया था “मैं अपनी जाति की जितनी भी सेवा करूंगा उतना ही मुझे आनन्द प्राप्त होगा।” भरतपुर की भलाई के मामलात में महाराज श्री कृष्णसिंह के पश्चात् आपने पूर्ण दिलचस्पी ली थी।

पहली ‘गोलमेज कान्फ्रेन्स’ में शामिल होकर देश और गवर्नमेण्ट के लिए उनके हृदय में जो सद्भाव हैं, उन्हें भली-भांति प्रकट किया था। इस बात पर उन्हें अभिमान था कि उनका जन्म उस महान् जाट जाति में हुआ है जो सदैव उन्नत और उदार विचारों वाली सिद्ध हुई है। पिछले वर्ष राणा उदयभानसिंह नरेन्द्र-मंडल के प्रो. चांसलर नियुक्त हुए हैं। यह बात राणा उदयभानसिंह की सर्वप्रियता का उदाहरण है। राणा उदयभानसिंह एक तपस्वी और धर्मिष्ठ नरेश हैं। ईश्वर-वन्दना, संत-सेवा, मिलनसारी और मृदुभाषण आपके सर्वोत्कृष्ट गुण हैं।

अन्याय और पक्षपात आपके राज्य में उस समय तक प्रवेश नहीं कर सका था। प्रजा न कर-भार से दुखित थी और न बेगार की मार से पीड़ित।

राजस्थान की अन्य रियासतों की जब हम प्रजा के सुख की दृष्टि से तुलना करते हैं तो धौलपुर हमें सर्वश्रेष्ठ दिखाई देता है। शारीरिक स्वास्थ्य के अनुपात से सभी राज्यों की प्रजा से धौलपुर की प्रजा श्रेष्ठ दिखलाई पड़ती थी। अधिकांश भारतीय-नरेश शराबी,कबाबी और विलासी बने हुए थे। महाराज राणा एकदम इन दुर्व्यसनों से कोसों दूर थे। वास्तव में धौलपुर के महाराज राणा “तपेश्वर और राजेश्वर” का संमिश्रण थे।

यदि हम यह कह दें कि वे कलियुग के ‘जनकराज विदेह’ हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
-----------------------------
ऐसे महान जाट राजा को शत शत नमन..
-----------------------------

टिप्पणियाँ