कैप्टन जगदेव सिंह पूनिया का बलिदान दिवस

------ बलिदान दिवस ------

कैप्टन जगदेव सिंह पुनिया
03-07-1945 - 04-12-1971
वीरांगना - स्व. श्रीमती मेवा देवी
यूनिट - 19 राजपुताना राइफल्स
चांदपुर का युद्ध 
ऑपरेशन कैक्टस लिली
भारत-पाक युद्ध 1971

कैप्टन जगदेव सिंह पुनिया का जन्म ब्रिटिश भारत में, 3 जुलाई 1945 को झुंझुनूं रियासत (अब झुंझुनूं जिला) की सूरजगढ़ तहसील की बनगोठड़ी कलां पंचायत के बनगोठड़ी खुर्द गांव में 6 राजरिफ के पूर्व सैनिक श्री हंस राम पुनिया एवं श्रीमती जमना देवी के परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही खेलों में अत्यधिक रुचि के साथ वह सशस्त्र बलों में सेवा की प्रबल अभिलाषा रखते थे। वर्ष 1969 में उन्हें भारतीय सेना की राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट की 19 वीं बटालियन में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त हुआ था। वर्ष 1971 तक वह कैप्टन के पद पर पदोन्नत हो चुके थे। वह A कंपनी के सेकंड-इन-कमांड थे।

पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों से मुक्त कराने के भारतीय सेना के हस्तक्षेप के लिए 19 राजरिफ बटालियन को युद्ध की आधिकारिक घोषणा से महीनों पूर्व कार्रवाई के लिए बुला लिया गया और उसे 73 माउंटेन ब्रिगेड के अंतर्गत रखा गया था। 73 माउंटेन ब्रिगेड 4 कोर के 57 माउंटेन डिवीजन का भाग थी, जिसमें 19 राजरिफ बटालियन को अगरतला वायु क्षेत्र के निकट तैनात किया गया था। युद्ध से पूर्व ही कैप्टन पुनिया और 19 राजरिफ की A कंपनी मुक्ति वाहिनी को गुरिल्ला ऑपरेशन का प्रशिक्षण दे रही थी।

3 दिसंबर 1971 को युद्ध की आधिकारिक घोषणा होते ही, कैप्टन पुनिया और उनके सैनिकों ने सीमा पार की और बिना किसी प्रतिरोध के एक सीमावर्ती गांव के निकट एक पाकिस्तानी स्थिति पर अधिकार कर लिया। उन्हें शत्रु के बल और स्थिति से संबंधित अधिक ज्ञान नहीं थी। अखौरा की ओर दबाव देने के साथ, 19 राजरिफ को तितास नदी के निकट 3-4 किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तानी सुरक्षा को निष्कासित करने का आदेश दिया गया, जो कि अखौरा की ओर भारतीय सेना की प्रगति को रोकने के लिए तैनात थी। बटालियन की A कंपनी को आगे बढ़ने का आदेश दिया गया था।

3 दिसंबर 1971 की विलंबित रात्रि कैप्टन पुनिया ने सैनिकों की एक प्लाटून का नेतृत्व किया और शत्रु के ठिकानों के निकट पहुंचे। पाकिस्तानी बंकर ऊंचे तटबंध पर थे और नीचे की भूमि को मीडियम मशीन गनों से कवर किया हुआ था तथा कंटीले तारों के साथ-साथ भूमि पर बारूदी सुरंगें भी बिछाई हुई थी। भारतीय पीटी -76 टैंकों को रोकने के लिए टैंक रोधी सुरंगें और चारों ओर टैंक रोधी खाइयां भी थीं। शत्रु के ऐसे भारी रक्षण को देखते हुए भी कैप्टन पुनिया और उनके सैनिकों ने अल्प आरंभिक आक्रमणों के पश्चात अपने पैर मात्र जमा लिए और शत्रु बंकरों की ओर बढ़ने में सफल रहे।

परंतु आगे जाकर, उनकी कंपनी खाईयों के निकट फंस गई और शीघ्र ही शत्रु के प्रचंड मीडियम मशीन गन फायर ने उन्हें दबा दिया। कैप्टन पुनिया ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि शत्रु बंकरों तक पहुंचने लिए उनके सैनिकों को ऊंची जमीन पर चढ़ना पड़ेगा।

कैप्टन पुनिया ने अपने एक सैनिक को उन्हें अपने कंधों पर उठाने के लिए कहा। जैसे ही, सैनिक ने उन्हें उठाया, उन्होंने स्वयं को ऊंची जमीन पर खींच लिया और एक बंकर में हथगोला फेंका। जैसे ही हथगोला फटा, पाकिस्तानियों ने उन पर गोलियां बरसाते हुए छोटे हथियारों की गोलीबारी की दिशा उनकी ओर कर दी! फिर भी, कैप्टन पुनिया ने निडरता से 'राजा रामचंद्र की जय' युद्धघोष किया और प्लाटून का मनोबल बढ़ाया जिसने उनके सैनिकों को खाई पर चढ़ने और पाकिस्तानियों को संगीनें घोंपने के लिए प्रेरित किया।

कैप्टन पुनिया रेंग कर एक दूसरे बंकर तक गए और उसमें भी हथगोला फेंका, जिससे और भी पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। मात्र एक प्लाटून द्वारा स्वयं को रौंदे जाते हुए देखकर, पाकिस्तानियों ने अपना रक्षण छोड़ दिया और अपने जीवन की रक्षा के लिए भागना आरंभ कर दिया। उन्होंने अल्पतम 3 टन राशन, गोला-बारूद और हथियारों को वहीं छोड़ दिया।

किंतु, गोलियों के घावों ने कैप्टन पुनिया के शरीर को घातक क्षति पहुंचाई। यद्यपि, उद्देश्य पर अधिकार हो गया था, किंतु अत्यधिक रक्तस्राव से शीघ्र ही वह वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में, कैप्टन पुनिया सहित A कंपनी के कुल 21 सैनिक बलिदान हुए थे। 4-5 दिसंबर की रात्रि में शेष रही A कंपनी ने उस प्लाटून को सुदृढ किया, किंतु कैप्टन पुनिया उनके साथ नहीं थे।

कैप्टन पुनिया द्वारा अत्यंत विषम और भयानक परिस्थितियों में अदम्य साहस, असीम शौर्य और अनुकरणीय नेतृत्व से लड़ते हुए सर्वोच्च बलिदान देने पर भी उन्हें कोई वीरता सम्मान नहीं मिलना खेदजनक है।

कैप्टन पुनिया जब बलिदान हुए उस समय उनके 4 साल के एक पुत्र सुखबीर सिंह थे। उनकी वीरगति के एक माह पश्चात उनके दूसरे पुत्र उमेद सिंह का जन्म हुआ था। सुखबीर सिंह भी सेना में थे। जिनका 1995 में निधन हो गया था। छोटे पुत्र उम्मेद सिंह भी अपनी पारिवारिक परंपरा का अनुसरण करते हुए 19 राजरिफ में सम्मिलित हुए और अल्प समय सेवा की थी।

इस भयानक लड़ाई में कैप्टन जगदेव सिंह पुनिया और 19 राजरिफ की A कंपनी के सैनिकों के परम बलिदान को भारत में, युगों-युगों तक स्मरण किया जाएगा। 💐🙏💐
जय हिंद!! जय जवान!!

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