शहीद प्रभुराम चोटिया ने करगिल युद्ध में छुड़ाए थे दुश्मनों के छक्के

13 जून 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद नायक प्रभुराम चोटिया की शहादत को नमन
नाइक प्रभु राम चोटिया राजस्थान के नागौर जिले के रहने वाले थे और उनका जन्म 3 जनवरी 1968 को हुआ था। श्रीमती गुलाबी देवी और श्री धना राम छोटिया के पुत्र, नाइक प्रभु राम ने अपनी स्कूली शिक्षा नागौर के सरकारी स्कूल से की।  उन्होंने स्कूल में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया, फर्स्ट डिवीजन हासिल किया और अपने अकादमिक कैरियर के दौरान पुरस्कार जीते।  कड़ी मेहनत और इच्छा-शक्ति के माध्यम से, नाइक प्रभु राम चोटिया को सितंबर 1987 में भारतीय सेना के लिए चुना गया था। उन्हें ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट के 18 ग्रेनेडियर्स में भर्ती किया गया था, जो अपने निडर सैनिकों और कई युद्ध सम्मानों के लिए जाना जाने वाला रेजिमेंट हैं |
‘मुझे गर्व है कि मैं एक शहीद की बेटी हूं, चाहे मुसीबत आए कितनी, मैं किसी से नहीं डरूंगी। अगर देश को दुश्मन ने घेरा, तो अंतिम सांस तक युद्ध करूंगी।’ यह कहना है कि इंदास के शहीद प्रभुराम चोटिया Kargil War Martyred की 21 वर्षीय बेटी निरमा का


जो करगिल युद्ध के दौरान मात्र डेढ़ साल की थी और पिता प्रभुराम Martyred PrabhuRam दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए।
निरमा से बड़ा एक भाई दयालाराम व एक बहन मंजू है। दयालाराम उस समय तीन साल का था और मंजू साढ़े चार साल की। परिस्थितियां काफी विकट थी, लेकिन फिर भी वीरांगना रूकीदेवी ने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाने का प्रयास किया, जिसकी बदौलत आज तीनों बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। 
पिता ने गांव का नाम रोशन किया
अपने पिता को तस्वीरों में देखकर बड़ी हुई निरमा ने बताया कि पिता के शहीद होने के बाद उसके परिवार को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा, लेकिन पिता के बलिदान एवं उन्हें मिले सम्मान के आगे वे सब बौनी हो गईं। पिता ने देश के लिए लड़ते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए।
निरमा कहती है -
‘तन समर्पित, मन समर्पित और यह सारा जीवन समर्पित
चाहती हूं मातृभूमि, तुझको कुछ और भी दूं।’

देश के काम आ गए
वीरांगना रूकीदेवी ने बताया कि बच्चे छोटे थे और पति देश के काम आ गए। ऐसा समय हमारे लिए किसी पहाड़ टूटने से कम नहीं था, लेकिन उन्होंने भी भारत माता की रक्षा करते हुए अपने प्राण बलिदान किए। यह सोचकर फिर सम्बल मिलता और इक्कीश साल का कठिन सफर तय कर लिया। आज बच्चे बड़े हो गए हैं।

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